साखी भगत बेनी जी की व नाम की महिमा – Bhagat Beni Saakhi – Naam ki Mahima

प्यार से बोलना जी – सतनाम श्री वाहेगुरु जी
एक आदमी था, जिसके घर में बे-अंत / बेहद गरीबी थी. कुछ खाने को नहीं, बच्चे, पत्नी और वो खुद भूख से तड़प रहे हैं.


घर वाली रोज़ ताने मारती है के कुछ कम कर लाओ. लेनदार रोज़ बहार आकर खड़े होते हैं, झगडा करते हैं.

बच्चे भूखे हैं, घर वाली ताने दे रही है, लेनदार पीछा नहीं छोड़ रहे, हर तरफ से परेशानियों ने घेर रखा है.


इसका नाम इतिहास में आया है भाई बेनी / भगत बेनी. ये आदमी पंडित है, ब्राह्मण. पूजा करता है. लोगों के घरों में जा कर पूजा, पाठ, हवन, यग्य आदि करवाता है. और वो जो दान दक्षिणा दें, उसी से घर का गुज़ारा होता है.


पर ऐसा वक्त आ गया के कोई बुलाता ही नहीं. दूसरों को बुलाते हैं. यह देखता है, बाकी सबको पर इसे कोई नहीं बुलाता.


परेशान है रोज़ रोज़ के तानों से, लेनदारों से, बच्चों के लिए कुछ कर नहीं पा रहा.


आज घर वाली ने कुछ ज्यादा ही बोल दिया के अगर आज कुछ कमी कर के ना ले कर आये, तो घर वापिस मत आना.
       प्यार से बोलना जी – सतनाम श्री वाहेगुरु जी


ये परेशान हो कर निकला और सोचते हुए चले जा रहा है, के अगर आज किसी ने नहीं बुलाया तो मैं नदी में कूद कर जान दे दूंगा, आत्म हत्या कर लूँगा.


और वही हुआ, शाम तक किसी ने नहीं बुलाया. कोई काम नहीं, कमाई नहीं, धन नहीं.

अब मन बना लिया अपनी ज़िन्दगी ख़तम करने का और नदी के किनारे पहुच गया आत्म हत्या करने के लिए. बैठा है एक पेढ़ के नीचे हिम्मत जुटा रहा है के अब छलांग लगाऊ के अब लगाऊ.

रात से वहीँ बैठा है. सोचते-सोचते हिम्मत इकठी करते-करते अमृतवेला हो गया.

अब इसने सोचा के दिन निकल आया है, नदि में छलांग लगा देता हु क्यूंकि घर तो जा नहीं सकता. जैसे ही उठकर कदम बढाया ही था नदि की तरफ, कानों में आवाज़ सुनाई दी:

मेरे राम, मेरे राम, मेरे राम राम राम…   मेरे राम, मेरे राम, मेरे राम राम राम…

 

       प्यार से बोलना जी – सतनाम श्री वाहेगुरु जी 

अमृत्वेले का समय, राम नाम के सिमरन की आवाज़, इतना सुरीला स्वर, इतनी मधुर धुन, इतनी मनमोहक आवाज़ के कदम रुक गए, और उस तरफ चल पढ़े जहाँ से आवाज़ आ रही थी.

कुछ दूर पहुच कर क्या पाया? के एक कोई संत महाराज जी हैं, समाधी लगाये बैठे हैं, मुख पर सूरज के सामान तेज है और राम नाम का सिमरन कर रहे हैं. और उन्हें सुन कर पहली बार मन को अनंत शांति का अनुभव हुआ. मन में बहुत सुकून मिला.

वहीँ पर बैठ गया और राम नाम के सिमरन में खो गया. राम नाम की धुन के साथ ही बहने लगा. सुबह हुई, संत महाराज जी ने समाधी खोली, तो ये ज़ोर ज़ोर से रोने लगा.

संत महाराज जी ने पूछा के भाई क्या हुआ? क्यों रोता है? – तब इसने अपनी सारी हालत बताई, अपने घर की हालत बताई के मैं तो आत्म हत्या करने जा रहा था. आपके सिमरन की आवाज़ आई और कदम खुद-ब-खुद इस तरफ आ गए. और इतनी मधुर धुन, राम नाम का सिमरन सुनकर जो मन को शांति मिल रही थी के मैं बैठ गया आपके चरणों में.

अब आप ही कृपा कर मुझे पर थोड़ी दया करें और मुझे कोई रास्ता बताएं. बच्चे भूखे तड़पते रहते हैं, घरवाली ताने देती है, लेनदार दिन-रात परेशान करते हैं. कोई पैसा नहीं है, कोई जरिया नहीं है. बहुत दुखी हु मैं. पंडित हूँ, पूजा, पाठ, हवन, यज्ञ करवाता हु मगर कोई बुलाता ही नहीं.

आदमी रोते जा रहा है संत महाराज जी के चरणों में बैठा बैठा. संत महाराज जी कहने लगे के तू राम नाम का सिमरन सुन कर इस तरफ आ गया, तू पंडित है, ब्राह्मण है, तो ब्रह्म महूरत (अमृत्वेले) उठकर राम नाम का सिमरन तो करता ही होगा?

उस आदमी ने सर झुका दिया. शर्मिंदा हो गया. कहने लगा के लोगों के घर में जा कर तो सिमरन करते हैं, पूजा करते हैं, पर अकेले कभी नहीं किया.

बात तो वहीँ आगई. सौदा ही नहीं है, बिकेगा क्या?

       प्यार से बोलना जी – सतनाम श्री वाहेगुरु जी
संत जी ने कहा के तो अब ज्ञान ले. रात को उठ जाया कर, स्नान किया कर और बैठ जाया कर अमृत्वेले राम नाम का सिमरन करने. तेरे सारे दुःख दूर हो जायेंगे.

पहली बार अमृत्वेले बैठ कर राम नाम का सिमरन किया है, तो अब इसके मन में एक अजीब सी ख़ुशी है, अजीब सी शांति और थोडा ठहराव है.

घर पंहुचा तो रोज़ की ही तरह आज भी बीवी ताने दे रही है, पर इसका मन स्थिर है, विचलित नहीं हो रहा आज. शांत है, कुछ बोल नहीं रहा. लेनदार आये, झगडा करके चले गए, लेनिक यह शांत है, विचलित नहीं हुआ.

अब ये रोज़ शाम को घर से निकल जाता है, पूरी रात नदी के किनारे बैठ कर राम नाम का जाप करता है. अमृत्वेले ध्यान करता है और सुबह होते ही घर को निकल जाता है.

       प्यार से बोलना जी – सतनाम श्री वाहेगुरु जी
घर वाली पूछती है के कहाँ जाते हो रोज़ रोज़ शाम को?

तो इसने जान छुड़ाने के लिए झूठ बोल दिया के राजा के दरबार में मुझे नौकरी मिल गयी है. मैं उन्हें रामायण का पाठ सुनाता हु.

अब घरवाली बोली के राजा के दरबार में नौकरी मिली है तो कुछ धन तो दिया ही होगा उसने. तो कुछ तो दो मुझे, लेनदार झगडा करते हैं, उन्हें कुछ दे कर चुप कराएँ. बच्चे भूखे हैं, कुछ तो खिलाएं.

ये कहता है के राजा से माँगा नहीं जाता. उसकी जब मर्ज़ी होती, जब मौज होगी, जब वो खुश होगा, खुद-ब-खुद हमारी झोलियाँ भर देगा.

रोज़ झूठ बोलता है, रोज़ नदी के किनारे जाकर बैठता है और करता क्या है?
मेरे राम, मेरे राम, मेरे राम राम राम…   मेरे राम, मेरे राम, मेरे राम राम राम…

लोक मजदूरी देत हैं, क्यों राखे राम…
       प्यार से बोलना जी – सतनाम श्री वाहेगुरु जी

इसे पता है के जब लोग काम करवा कर मजदूर को मजदूरी देते हैं, तो राम क्यों रख लेगा? उसे तो किसी चीज़ की कमी भी नहीं. सृष्टि का मालिक क्यों रखेगा? भाव: एक बार भी जपा हुआ नाम व्यर्थ नहीं जाता.

आज फिर वो समय आगया जब घरवाली बहुत नाराज़ हो गयी. वो कहने लगी देखो जी मैं तंग आ गयी हु, बहुत दिन हो गए लेनदारो को जवाब देते देते. अब मैं आपको बता रही हु के अगर आप आज राजा से कुछ नहीं ले कर आये तो मैं बच्चों को लेजा कर नदी में छलांग लगा दूंगी.

अब इसका मन इतना दुख के शाम को गया तो सुबह वापिस आया ही नहीं. इतना मन दुख के दुखी मन से लीन हो गया राम के नाम में. जुड़ गया, खो गया.

अब जिसके चिंतन में ये बैठा है, उसे चिंता हो गयी इसकी. ये जुड़ा बैठा है राम के नाम में और राम को चिंता हो गयी.

हुआ क्या?


ये एतिहासिक घटना है और इतिहास में लिखा है के राजा खुद बहुत से सैनिक, राशन की बैलगाड़िया भर कर और बहुत सा धन ले कर इसके घर पहुच गया. और इसका घर इतनी धन दौलत से भर दिया के सारा जीवन खाते रहे, ख़तम नहीं होगा. और कहने लगे इसकी घरवाली से के बेनी ने बहुत अच्छा रामायण का पाठ सुनाया है हमें. रोज़ सुनाता है, और इतना रस आता है के हम खुश हैं उससे.

घरवाली हैरान, ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं.

       प्यार से बोलना जी – सतनाम श्री वाहेगुरु जी

उधर बेनी जब ध्यान से बहार आया, घर वापिस चलने लगा तो सोच रहा है के ताने सुनने को मिलेंगे. लेकिन जब पंहुचा तो देख कर हैरान रह गया. गिर पढ़ा ज़मीन पर और ज़ोर ज़ोर से रोने लगा के मेरे राम आये थे. मैंने तो झूठ कहा था, मुझे कोई नौकरी नहीं मिली राजा के दरबार में. वो मेरे राम थे जो मेरे लिए यह सब दे कर गए.

       प्यार से बोलना जी – सतनाम श्री वाहेगुरु जी

अब आप खुद ही विचार कीजिये के ये बेनी जो आत्महत्या करने जा रहा था. आज उसकी बानी श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी में दर्ज है. और भगत बेनी के नाम से जाना जाता है. भगत का स्थान मिला. इतनी ऊँची अवस्था का मालिक हुआ ये. कौन? – जो आत्महत्या करने गया था. एक आम आदमी, जिसे कोई नहीं जानता, हर तरफ से परेशान था.

आखिर उसने किया क्या जो इतनी ऊँची अवस्था मिली उसे? – अमृतवेला संभाला और नाम जपा. सिर्फ इसी वजह से आज साड़ी दुनिया उसे माथा टेकती है.

हम रोते हैं के हमारा काम नहीं चलता, यह परेशानी है, वो परेशानी है……. अरे गुरु नानक देव जी ने हम सबको रास्ता दिखाया है अपनी साड़ी परेशानियों से बच निकलने का. क्या है रास्ता? – वो रास्ता है: अमृतवेला और नाम.

40 दिन अमृत्वेले उठकर श्री सुखमनी साहिब जी का पाठ करके देखो. जीवन ना बदल जाए तो कहना.

श्री गुरु अर्जन देव जी के वचन हैं के एक जपजी साहिब जी का और एक सुखमनी साहिब जी का पाठ करने के बाद अपना काम करो, फिर देखो, ऐसा हो ही नहीं सकता के बरकत न पढ़े.

अमृत्वेले उठने वाला, जपजी साहिब और सुखमनी साहिब जी का पाठ करने वाला अगर मिटटी में भी हाथ डाले तो वोह भी सोना हो जाता है…

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अमृत्वेले कितने बजे उठते हो?,

सिमरन कितना करते हो?

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