वो मुस्कुराया करता था किसी की याद में अक्सर, मैं नादान उसकी हर मुस्कान को अपने लिए समझता रहा...

बहुत पुराना मकान यादों का, मेरे अधूरे ख्वाब और मैं साथ रहते हैं...

दुआ कबूल ना हो तो लोग खुदा तक बदल लेते हैं, उसने महबूब बदला, तो शिकायत कैसी...

जितना जिया तेरे साथ ही जिया मैं, अब तो बस सांस आती जाती रहती है...

सौ बार चमन महका, सौ बार बहार आई, दुनिया की वही रौनक थी मगर, दिल की वही तन्हाई…

उसे भूल जाने की कसम खाता तो हूँ मगर, टपक पढ़ते हैं आंसूं, कसम फिर टूट जाती है…

रो पढ़ा वो शक्स आज अलविदा कहते कहते, मेरी शरारतों पे जो देता था धमकियाँ जुदाई की…

ऐ खुदा, आखिर मुझे मेरे किन गुनाहों की सजा मिली? वो मिली भी तो क्या मिली, बन के एक बेवफा मिली...

दर्द ने दिल से कहा: वो अब तेरा ना रहा

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