शिव भक्त और चोर | short moral story in Hindi – यह कहानी है एक संत महाराज जी (भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त) और एक चोर के ऊपर। इसे पढ़ कर आज हम जानेंगे कि हमें कभी भी परिस्थितियों को जाने बगैर कभी कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए।
शिव भक्त और चोर
Short Moral Story in Hindi
एक गाँव में एक संत महाराज जी रहते थे, जो बहुत ही महान शिव भक्त थे। सभी से प्रेम करते थे और हर समय ॐ नमः शिवाय के जप में ही लगे रहते थे।
संत महाराज जी अपने शिष्यों के साथ एक छोटी सी कुटिया में रहते थे और उनके पास अपना सिर्फ एक कीमती कम्बल था। वो कम्बल भी उन्हें उनके श्रधालुओं ने ही भेंट किया था, जो वे बहुत ही प्रेम से इस्तेमाल करते थे।
एक रात एक चोर उन संत जी की कुटिया में दबे पाँव आया और वह कीमती कम्बल चुरा कर ले गया।
कुछ दिनों बाद एक दिन संत जी बाज़ार से गुज़र रहे थे कि उन्होंने वहां फटे पुराने कपड़ों में एक व्यक्ति को उनका वही कीमती कम्बल एक दुकानदार को बेचते हुए देखा। तो वे वहां रुक गए।
दुकानदार को उस ग़रीब के फटे पुराने कपडे देख कर उसपर शक जुआ और वो बोला कि:
“भाई ये कम्बल कहीं चोरी का तो नहीं? कहाँ से लाया है ये कम्बल? ये तेरे पास आया कहाँ से? अगर तो ये तेरा है और तू इसे बेचना चाहता है तो मुझे कुछ प्रमाण चाहिए। प्रमाण के तौर पर अगर कोई सज्जन व्यक्ति आकर गवाही दे, तो ही मैं ये कम्बल खरीदूंगा, वरना नहीं।”
संत महाराज जी जो महान शिव भक्त थे वहीँ खड़े थे, मन ही मन ॐ नमः शिवाय का जप कर रहे थे। और सब कुछ सुन भी रहे थे। वे दूकान के भीतर जा कर दुकानदार से बोले कि:
“मैं देता हूँ इसकी गवाही, मैं हूँ प्रमाण। तुम ये कम्बल खरीद लो और इसे इसके हक के पैसे देदो।”
दुकानदार को ये आश्वासन देकर संत महाराज जी बाहर चले आए।
बाहर आते ही उनके शिष्यों ने उनसे पूछा कि उन्होंने ऐसा क्यूँ किया। जिसपर संत महाराज जी ने कहा:
“यह बेचारा बहुत ही निर्धन व ग़रीब व्यक्ति है। निर्धनता और ज़रुरत के कारण ही इसने ऐसा कार्य किया है। और हम सभी को जिस तरह भी हो पाए, जितना भी हो पाए ग़रीबों की सदैव मदद करनी चाहिए।”
संत जी के ऐसे वचन सुन कर वह चोर उनके पाँव में गिर पड़ा और उसने संत जी से वादा किया कि अब से वह कभी भी चोरी नहीं करेगा।
Moral of the Story | शिक्षा
दोस्तों, इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि कभी भी जीवन में कोई भी निर्णय लेने से पूर्व, हमें दोनों तरफ की परिस्थितियों को सही से जान लेना व समझ लेना चाहिए। दोनों तरफ की परिस्थितियों को जाने व समझे बिना हमें कभी भी अपने जीवन में कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए।
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